नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई कर्मचारी स्थायी कर्मी जैसी भूमिका में लंबे समय तक कार्य करता है, तो वह “समान काम के लिए समान वेतन” का हकदार होगा।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने गाजियाबाद नगर निगम द्वारा 2005 में एक माली की सेवाएं समाप्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नौकरशाही की सीमाएं श्रमिकों के वैध अधिकारों को कम नहीं कर सकतीं।
छह महीने में नियमित करने का आदेश
पीठ ने कहा कि 1998 से कार्यरत इन कर्मचारियों को बिना नोटिस, लिखित आदेश या मुआवजे के हटाना गलत था। कोर्ट ने नगर निगम को निर्देश दिया कि छह महीने के भीतर उनकी सेवाओं को नियमित किया जाए और उन्हें 50% बकाया वेतन दिया जाए।
श्रम कानूनों का उल्लंघन
अदालत ने पाया कि यह मामला बुनियादी श्रम कानून सिद्धांतों का उल्लंघन है। न्यायालय ने कहा कि जहां कार्य स्थायी प्रकृति का हो, वहां संविदात्मक या दैनिक वेतनभोगी नियुक्तियां स्वीकार्य नहीं हैं।
इस फैसले से उन अस्थायी कर्मचारियों को राहत मिल सकती है, जो वर्षों से स्थायी भूमिका में कार्यरत हैं, लेकिन उचित वेतन और अधिकारों से वंचित हैं।