बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने चिंता जाहिर करते हुए अपने सोशल मीडिया पेज से चिंता जाहिर करते हुए लिखा, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और उनके मानवाधिकारों का हनन एक गंभीर समस्या है, जो केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक मानवाधिकारों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर भी सवाल खड़ा करता है। पिछले कुछ दिनों में, यहां हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ अत्याचार और मानवाधिकारों के हनन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की कुल जनसंख्या का लगभग 8% है, आज अपने अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है।
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, लाखों हिंदुओं ने पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का सामना किया। इस संघर्ष में हिंदुओं ने प्रमुख भूमिका निभाई, लेकिन इसके बावजूद वे स्वतंत्र बांग्लादेश में भी सुरक्षित नहीं रहे। 1974 में लागू कब्जा कानून के जरिए हिंदुओं की संपत्तियां जब्त की गईं। इसके बाद से ही हिंदुओं की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली गई।
आज, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा, जबरन धर्म परिवर्तन, मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने, संपत्ति हड़पने, और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, हर साल सैकड़ों हिंदू परिवारों को अपने घर और जमीन छोड़कर भागने पर मजबूर किया जाता है।
बांग्लादेश में हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण और शादी एक गंभीर समस्या बन चुका है। ऐसे मामलों में स्थानीय प्रशासन और पुलिस भी पीड़ित परिवारों की मदद नहीं करती। दुर्गा पूजा के दौरान, कई हिंदू मंदिरों और पूजा स्थलों पर हमले हुए, जिनमें न केवल धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया, बल्कि कई निर्दोष लोगों की जानें भी गईं। बांग्लादेश में हिंदू त्योहारों के दौरान हिंसा और उपद्रव की घटनाएं आम हो चुकी हैं। दुर्गा पूजा, काली पूजा और सरस्वती पूजा जैसे पर्वों के दौरान हिंदू समुदाय को धमकाया जाता है। मूर्तियों को खंडित करना और पूजा पंडालों पर हमला करना एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन चुकी है। बांग्लादेश की राजनीति में हिंदुओं की समस्याओं को नजरअंदाज किया जाता है। हालांकि, सरकार ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की बात कही है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। हिंसा के मामलों में आरोपियों को शायद ही कभी सजा मिलती है, जिससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। हिंदू समुदाय पर अत्याचार न केवल उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह उनके बुनियादी मानवाधिकारों का भी हनन है। हर इंसान को अपनी आस्था और संस्कृति के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है, लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं से यह अधिकार छीन लिया जा रहा है।
बांग्लादेश का संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है और सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का वादा करता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से हिंदुओं के साथ भेदभाव और हिंसा की घटनाएं संविधान के इन वादों को खोखला साबित करती हैं। भारत, जो बांग्लादेश का पड़ोसी और ऐतिहासिक रूप से उससे जुड़ा हुआ है, ने हिंदुओं के उत्पीड़न पर चिंता जताई है। लेकिन भारत और अन्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस मुद्दे पर और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।भारत को बांग्लादेश के साथ कूटनीतिक वार्ता के माध्यम से हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाना चाहिए। साथ ही, शरणार्थी नीति में सुधार कर उत्पीड़ित हिंदुओं को मदद पहुंचाने की पहल करनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को बांग्लादेश में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच करनी चाहिए और बांग्लादेश सरकार को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करना चाहिए।