*24 अप्रैल 2025:* सनातन संस्था ने भगवान विष्णु के छठवें अवतार, परशुराम के जीवन और शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके ब्राह्म-क्षात्र तेज और अधर्म नाशक स्वरूप को रेखांकित किया। मानवता के लिए प्रेरणादायक भगवान परशुराम सप्त चिरंजीवों में से एक हैं, जो आज भी अदृश्य रूप में पृथ्वी पर विद्यमान हैं। उनका स्मरण मनःशांति, संयम और पराक्रम की प्रेरणा देता है।
परशुराम ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का अनूठा संगम थे। जन्म से ब्राह्मण होने के बावजूद, उन्होंने क्षात्रगुण अपनाकर अधर्मी राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन जैसे दुष्टों का संहार किया। गोमाता की रक्षा हेतु उन्होंने 21 बार पृथ्वी प्रदक्षिणा कर उन्मत्त क्षत्रियों का अंत किया, जो धर्म रक्षा के लिए शस्त्र की पवित्रता को दर्शाता है।
शास्त्र और शस्त्र के समन्वय का प्रतीक, परशुराम ने कश्यप मुनि और भगवान शिव से ज्ञान व दिव्य अस्त्र विद्या अर्जित की। उनकी तपस्या, गुरु-शिष्य परंपरा और वैराग्य की भावना आज के युग में प्रासंगिक है। अश्वमेध यज्ञ के बाद उन्होंने समस्त भूमि दान कर महेन्द्र पर्वत पर संन्यास जीवन अपनाया, जो दानशीलता और त्याग का आदर्श है।
सनातन संस्था के अनुसार, परशुराम की शिक्षाएं आज के समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन के खिलाफ प्रेरणा देती हैं। उनका जीवन युवाओं को ज्ञान, शौर्य, संयम, राष्ट्रनिष्ठा और महिलाओं के सम्मान का पाठ पढ़ाता है। परशुरामभूमि की रचना और चित्तपावन ब्राह्मणों का सर्जन उनकी आध्यात्मिक सृजनशीलता को दर्शाता है।
संस्था ने युवाओं से आह्वान किया कि वे परशुराम के गुणों को आत्मसात कर शक्तिशाली, विवेकी और निःस्वार्थ बनें। उनके आदर्शों को जीवन में उतारना ही सच्ची भक्ति होगी। भगवान परशुराम के ब्राह्म-क्षात्र तेज को नमन करते हुए, सनातन संस्था ने उनके संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प दोहराया।