उत्तरकाशी:-सनातन धर्म में कुशा का बहुत महत्व है,मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया।उसके बाद अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से जो बाल पृथ्वी पर गिरे वही कुशा के रूप में बदल गए,भगवान हरि के शरीर से उत्पन्न होने के कारण कुशा को पवित्र माना जाता है।कुशा एक ऐसा पवित्र वृक्ष (घास) है जो पूजन अर्चन में काम आता है।अथर्ववेद में तथा महाभारत में भी इसका वर्णन है।ऋग्वेद में बताया गया है कि अनुष्ठान और पूजा-पाठ में कुशा की पवित्री पहनकर ही हमें पूजा पाठ,पितृ तर्पण पूजन करना चाहिए।साथ ही कुशा की आसानी बहुत पवित्र मानी गई हैं और कुशा से सिंचित जल शरीर पर पड़ने से पवित्रता आ जाती है।भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है और इस दिन निकाली हुई कुशा पूरे वर्ष तक पवित्र रहती है।महाभारत के आदि पर्व में भी कुशा का वर्णन है।देवता तथा पितरों को तर्पण के समय हाथ में कुशा रख करके तिल के साथ जल देने पर देवता और पितर प्रसन्न होते हैं।कुशा के अग्र भाग में भगवान शंकर मध्य में प्रभु केशव तथा मूल जड़ में ब्रह्मा जी का वास होता है।
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