उत्तराखंडगढ़वाल मण्डल

सदाचार ही परम धर्म है-सूयकांत बलूनी

हरिद्वार, 6 अगस्त। जिला कारागार रोशनाबाद में आयोजित शिव महापुराण कथा के नौंवे दिन की कथा श्रवण कराते हुए कथाव्यास सूर्यकांत बलूनी ने कहा कि सदाचार ही परम धर्म है। इससे ही मन बुद्धि सधती है। यह आचरण तीन प्रकार से लाभ देता है। गुरुपरंपरा, शास्त्र, कुलपरंपरा। यही त्रिवेणी देह को प्रयागराज बना देती है। जीव त्रिविध रूप-अज्ञानता, अकर्मण्यता, कुसंग से मनसा, वाचा, कर्मणा मनमाने कर्मवशीभूत आत्मज्ञान से वंचित रह जाता है। शिव तीनों को रांधकर शुद्ध कर देते हैं। यही शिवरात्रि है। इसलिये शिव पूजन, ध्यान, स्तुति, कथा श्रवण आदि करते रहना चाहिये। कथाव्यास ने कहा कि सत्संग रहित ब्यक्तित्व भी अभिमान में विद्या आदि का उचित उपयोग नहीं कर पाता। सनतकुमार को नंदीश्वर ने आत्मज्ञान सिखाया व जीवन में उतारकर जीवहित की सलाह दी। लेकिन सनत्कुमार तर्क दिया कि आत्मज्ञानी जीव और संसार के प्रपंच में क्यों पड़े। तो नंदीश्वर ने उन्हें ऊंट की योनि में जन्म लेने का दंड दिया। लेकिन सनत कुमार को आत्मज्ञान तब आया जब वे ऊंट योनि में ही शिव याने कल्याणकारी चिंतन मनन करने लगे। तब ऊंट योनि से उनका उद्धार हुआ तो उन्होंने अपने साथ कई साधकों को तार दिया। इस दौरान श्री अखंड परशुराम अखाड़े के अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक, जेल अधीक्षक मनोज आर्य, प्रेस क्लब अध्यक्ष अमित शर्मा,शिवालिक नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष राजीव शर्मा,आर्चाय गिरीश मिश्रा,संगीता प्रजापति,मंजू,अनूप सिंह, प्रवीण झा, अखाड़े के विद्यार्थी जलज कौशिक, सत्यम शर्मा, अश्मित कौशिक आदि ने व्यास पूजन, नवग्रह पूजन और रुद्राभिषेक किया। जेल अधीक्षक मनोज आर्य ने कहा कि धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से मन में सात्विक विचारों को उदय होता है। कथा श्रवण से कैदियों को भी लाभ होगा। उनके जीवन की दशा बदलेगी। श्री अखंड परशुराम अखाड़े के अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि अखाड़े द्वारा समय-समय धार्मिक आयोजन कर धर्म और राष्ट्र के प्रति अपने भाव प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। सभी सामाजिक संगठनों को मिलजुल कर धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेना चाहिए और राष्ट्र के प्रति सच्चे मार्ग पर चलना चाहिए। इस अवसर पर चमन गिरी, संजय कुमार, भोलू कुमार, हिमांशु छलिया, आचार्य विष्णु शर्मा, अनिल तिवारी, पंडित पवन कृष्ण शास्त्री, कुलदीप शर्मा, सोमपाल कश्यप, राकेश उपाध्याय आदि मौजूद रहे।

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