देहरादून, 21 मई 2025*: उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने शिक्षा में शुचिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक और निर्णायक कदम उठाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2019-20 सत्र में NEET काउंसलिंग प्रक्रिया के बिना निजी होम्योपैथिक कॉलेजों में दाखिला लेने वाले बी.एच.एम.एस. विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम रोकने का फैसला किया है। यह कदम मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति के अनुरूप है।
**न्यायालय ने भी लगाई मुहर**
विश्वविद्यालय के इस निर्णय को उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल ने भी सही ठहराया है। 16 मई 2025 को माननीय न्यायमूर्ति श्री मनोज कुमार तिवारी की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में निजी कॉलेज की संशोधन याचिका खारिज कर दी गई। विश्वविद्यालय की ओर से शासकीय अधिवक्ता श्री संदीप कोठारी ने तर्क दिया कि बिना काउंसलिंग के दाखिले अवैध हैं, और विश्वविद्यालय को परिणाम रोकने का पूर्ण अधिकार है। न्यायालय ने विश्वविद्यालय के निर्णय को विधिसम्मत माना।
**शिक्षा में अनुशासन और गुणवत्ता पर जोर**
विश्वविद्यालय के कुल सचिव श्री रामजीशरण शर्मा ने कहा, “नियमों का पालन अनिवार्य है। शिक्षा में किसी भी अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” कुलपति प्रोफेसर अरुण कुमार त्रिपाठी ने जोर देकर कहा कि भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCISM) और राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग के मानकों का कड़ाई से पालन किया जाएगा। उन्होंने इसे शिक्षा में भ्र Mello
System: रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में पहला कदम बताया।
**मुख्यमंत्री का समर्थन**
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी और आयुष सचिव के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। यह कदम न केवल नियमों के पालन को सुनिश्चित करता है, बल्कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक शिक्षा की गुणवत्ता को भी मजबूत करता है।
*यह खबर शिक्षा जगत में पारदर्शिता और अनुशासन के प्रति उत्तराखंड सरकार और विश्वविद्यालय के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।*