हरिद्वार, 22 मई 2025: पतंजलि विश्वविद्यालय में दिगंबर जैन परंपरा के प्रखर संत आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज के आगमन पर भव्य स्वागत समारोह आयोजित हुआ। स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने उनका भावपूर्ण अभिनंदन किया। इस अवसर पर जैन मुनि ने स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के योग, आयुर्वेद और मानवता के लिए निस्वार्थ कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा, “प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप जीवन जीना चाहिए, विकृति में जीना दरिद्रता का प्रतीक है।”
स्वामी रामदेव ने कहा, “आचार्य प्रसन्न सागर का आगमन भारतीय दर्शन और सनातन परंपरा की आत्मा का उद्घोष है। जैन धर्म तप, संयम और अहिंसा का शुद्धतम रूप है। गुणातीत अवस्था में जीना ही सच्चा जीवन है।” आचार्य बालकृष्ण ने संस्कृत में रचित आठ श्लोकों के प्रशस्ति-पत्र का पाठ कर आचार्य प्रसन्न सागर के शुचिता पूर्ण जीवन और तप की प्रशंसा की।
समारोह में जैन समाज ने स्वामी रामदेव को प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित किया, जबकि पतंजलि विश्वविद्यालय ने आचार्य प्रसन्न सागर को उनके आध्यात्मिक समर्पण के लिए प्रशस्ति-पत्र भेंट किया। जैन मुनि ने पतंजलि अनुसंधान संस्थान का भ्रमण कर इसके कार्यों की सराहना की और हर्बल गार्डन में वृक्षारोपण किया।
कार्यक्रम में जैन मुनि पीयूष सागर, अप्रमत्त सागर, परिमल सागर, नैगम सागर, माता ज्ञानप्रभा, चरित्रप्रभा, पुण्यप्रभा, प्रो. साध्वी देवप्रिया, प्रो. मयंक कुमार अग्रवाल, संकायाध्यक्ष, शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे। यह आयोजन आध्यात्मिक चेतना और सनातन दर्शन के संवाद का अनुपम दृश्य प्रस्तुत करता रहा।