वैज्ञानिक शोधों के आधार पर भी यही सिद्ध होता है कि जैविक प्रजातियों में शक्ति का स्रोत माता की अण्ड कोशिका से गर्भस्थ भ्रूण को प्रदत्त ” सूत्र कणिका” (Mitochondrial DNA) ही है, जो आक्सीडेटिव फॉस्फोराइलेशन द्वारा भोजन से प्राप्त रसायनों को एडेनोशिन ट्राइफॉस्फेट (ATP) में बदल कर कोशिकाओं की सक्रियता के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं।
सूत्र कणिकाएं वस्तुत: यूकैरियोटिक कोशिकाओं के नाभिक द्रव्य के एक बहुत ही छोटे हिस्से में स्थित माइटोकॉन्ड्रियल (कणिका) के अन्दर पाए जाने वाले गोलाकार छल्ले के आकार वाले गुणसूत्र हैं। साधारण रूप से हाथ हिलाने में ही हाथ की कोशिकाओं को अरबों ए टी पी का उपयोग करना पड़ता है। अत: जैविक प्रजातियों को अपनी क्रियाशीलता को बनाए रखनें के लिए माता द्वारा प्रदत्त इसी शक्ति गृह से आवश्यकतानुसार ऊर्जाएंं प्राप्त करनी पड़ती है।
माता को यह विशिष्ट तत्व अनुवाशिंक रूप से अपनी माता से शत प्रतिशत प्राप्त होते हैं, जबकि पिता के शुक्राणुओं में उपलब्ध सूत्र कणिकाएं जननांग पथ में गति करते और अण्डकोशिका में निषेचन काल में पूर्णत: नष्ट हो जाती है।
इस प्रकार मातृ विरासत से प्राप्त इस मातृ शक्ति(सूत्र कणिका) का मूल स्त्रोत आदिशक्ति से ही निष्पक्ष प्रमाणित होता है। यही कारण रहा कि भारत में रबी और खरीफ नवान्नों का उपभोग करनें से पूर्व वासन्तिक व शारदीय नवरात्रि के व्रत अनुष्ठान की परम्परा है। जिसके द्वारा मानव कोशिकाओं में पाए जानें वाले सूत्र कणिकाओं को समुचित विश्राम दिया जाता है ताकि भोज्य रसायनों से ऊर्जा उत्पादन की उनकी क्षमताओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सके। साथ साथ इसके मूल स्त्रोत अर्थात आदिशक्ति को भी अत्यन्त श्रद्धा से स्मरण किया जाता है।