उत्तराखंडगढ़वाल मण्डलहरिद्वार

त्याग तपस्या और बलिदान की प्रतिमुर्ति थे स्वामी सत्यदेव महाराज : स्वामी संतोषानंद

हरिद्वार। श्री अवधूत मंडल आश्रम, बाबा हीरादास हनुमान मंदिर के पीठाधीश्वर महंत महामंडलेश्वर डा. स्वामी संतोषानंद महाराज ने कहा कि महामंडलेश्वर स्वामी सत्यदेव महाराज त्याग, तपस्या और बलिदान की प्रतिमुर्ति थे। अपने जीवन काल में उन्होंने संत -सेवा , गौ- सेवा के साथ शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक प्रकल्प चलायें। आज उनकी 20 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है।

गौरतलब है कि श्री अवधूत मंडल आश्रम बाबा हीरादास हनुमान मंदिर के पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी सत्यदेव महाराज की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। इसके पूर्व महामंडलेश्वर डॉ स्वामी संतोषानंद देव महाराज ने उनकी प्रतिमा का विरोध पूजन कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर

डॉ स्वामी संतोषानंद देव महाराज ने कहा सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण संवर्द्धन और प्रचार प्रसार में संत महापुरूषों ने हमेशा ही अग्रणी भूमिका निभायी है। भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाले संत महापुरूषों को अपना कुछ नहीं होता है। संत जो भी करते हैं। परमार्थ और मानव कल्याण के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म शास्त्रों में गुरू की अपार महिमा बतायी गयी है। गुरू के बिना ना तो ज्ञान मिलता है और ना ही कल्याण होता है। संत रूपी गुरू के सानिध्य में मिले ज्ञान के अनुसार धर्मानुकुल आचरण करने से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।

गौ गंगा धाम सेवा ट्रस्ट के परमाध्यक्ष स्वामी निर्मल दास ने कहा कि उत्तराखंड देवताओं की भूमि और संतों की तपस्थली है। देवभूमि उत्तराखंड के संतों के श्रीमुख से प्रसारित आध्यात्मिक संदेशों से पूरे विश्व को मार्गदर्शन प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि धर्म और अध्यात्म का मार्ग ही श्रेष्ठ मार्ग है। धर्म और अध्यात्म की तलाश में यूरोपीय देशों के लोग पाश्चात्य संस्कृति को त्याग कर सनातन धर्म संस्कृति को अपना रहे हैं। जल्द ही भारत विश्व गुरू की पदवी पर आसीन होगा और पूरी दुनिया को धर्म और अध्यात्म का मार्ग दिखाएगा।

इस अवसर पर महंत राघवेंद्र दास, महंत जयेंद्र मुनि, महंत गोविंददास, महंत प्रेमदास, महंत मुरलीदास, स्वामी ऋषि रामकृष्ण, महंत रघुवीर दास, महंत बिहारी शरण, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, महंत चिन्मयानंद, स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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