हरिद्वार (कनखल), 2 अक्टूबर 2025 — दशहरा पर्व के अवसर पर धर्मनगरी हरिद्वार में परंपरानुसार कई अखाड़ों और मठों में शस्त्र पूजन की गई। कनखल स्थित महानिर्वाणी अखाड़े में आज साधु-संतों ने विधि-पूर्वक शस्त्रों की पूजा कर इस प्राचीन परंपरा को आगे बढ़ाया।
अखाड़े के सचिव महंत रविंद्र पुरी ने इस अवसर पर बताया कि सनातन धर्म में शस्त्र पूजा की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनका कहना था कि “जब भी देश, धर्म या गौ माता पर कोई विपत्ति आती है, संन्यासी (आत्मिक योद्धा) प्राणों की आहुति देने के लिए सदैव आगे रहते हैं।” उन्होंने आगे यह भी कहा कि आदि शंकराचार्य ने नागा संन्यासियों को शास्त्र एवं शास्त्र दोनों का प्रशिक्षण प्रदान किया था, और शस्त्र पूजा की परंपरा उन्हीं की विरासत का हिस्सा है।
क्या है शस्त्र पूजा?
शस्त्र पूजा को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह प्रतीक है उस समर्पण और चेतना का जो रक्षा, धर्म, और साहस से जुड़ी हुई है। विजयदशमी (दशहरा) पर्व पर विशेष रूप से शस्त्र पूजा की जाती है, ताकि धर्म की विजय सुनिश्चित हो सके।
प्रतिक्रियाएँ एवं महत्व
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस कार्यक्रम ने आस्था एवं सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया।
धार्मिक जगत में इसे एक सुदृढ संदेश माना गया कि धर्म की रक्षा के लिए सिर्फ भावना ही नहीं, बल्कि तैयारी और संकल्प भी आवश्यक हैं।