प्रयागराज, 30 जनवरी – महाकुंभ के दौरान वैष्णव परंपरा के तपस्वी बसंत पंचमी से कठिन तपस्या शुरू करेंगे। इस बार करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी “खप्पर तपस्या” करेंगे, जो सबसे कठिन मानी जाती है। खाक चौक समेत विभिन्न अखाड़ों और आश्रमों में इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।
18 साल में पूरी होती है यह कठिन साधना
श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है। यह तपस्या छह चरणों में पूरी होती है – पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि और खप्पर। प्रत्येक चरण तीन साल का होता है, और पूरी तपस्या 18 साल में पूर्ण होती है।
परमात्मा दास के अनुसार, सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से यह तपस्या आरंभ की जाती है। पहले साधक निराजली व्रत रखते हैं, फिर धूनी में बैठकर तपस्या करते हैं।
सबसे कठिन है “खप्पर तपस्या”
खप्पर तपस्या सबसे अंतिम और कठिन चरण होता है। इसमें साधक को सिर के ऊपर मटके में जलती हुई अग्नि रखकर रोजाना 6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है। यह कठिन साधना बसंत पंचमी से गंगा दशहरा तक चलती है और इसे पूरा करने में तीन साल लगते हैं।
तपस्या से तय होती है साधुओं की वरिष्ठता
महाकुंभ में साधु अपनी तपस्या पंच धूना से शुरू करते हैं और धीरे-धीरे उच्च श्रेणी में जाते हैं। खप्पर श्रेणी के साधकों को सबसे वरिष्ठ माना जाता है। कई साधक खप्पर तपस्या पूरी करने के बाद दोबारा भी साधना आरंभ करते हैं।
इस बार दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ों के अलावा खाक चौक में साढ़े तीन सौ से अधिक तपस्वी खप्पर तपस्या करेंगे, जबकि अन्य साधक अपने-अपने चरणों की तपस्या जारी रखेंगे।