प्रयागराज: सनातन परंपरा का अनुपम प्रतीक कुंभ मेला हिंदू धर्म के आस्था और एकता का सबसे बड़ा पर्व है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर करोड़ों श्रद्धालु बिना किसी निमंत्रण के आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की कामना से एकत्र होते हैं।
इस वर्ष कुंभ मेले में सनातन संस्था, हिंदू जनजागृति समिति और महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय सहित विभिन्न धार्मिक संगठनों ने हिंदू राष्ट्र अधिवेशन और एकता पदयात्रा का आयोजन किया। श्रद्धालुओं ने इसे अपार समर्थन देते हुए सनातन संस्कृति के संरक्षण और धर्म जागरण का संदेश दिया।
अध्यात्म और एकता का संगम
कुंभ मेले में साधु-संतों की शाही स्नान शोभायात्रा, संत प्रवचन, अखाड़ों की उपस्थिति और विशाल अन्नछत्र मुख्य आकर्षण रहे। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक के साधु-संतों के दर्शन का यह अनमोल अवसर होता है, जहां आध्यात्मिक साधना, धर्मशिक्षा और लोकहितकारी परंपराओं का समावेश देखा जाता है।
इतिहास में दर्ज अविस्मरणीय दृश्य
1942 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने प्रयागराज कुंभ मेले का हवाई सर्वेक्षण किया और भीड़ को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। जब उन्होंने पं. मदनमोहन मालवीय से पूछा कि इस आयोजन के लिए कितना खर्च हुआ होगा, तो उत्तर मिला—“सिर्फ दो पैसे!” क्योंकि श्रद्धालु पंचांग देखकर स्वयं ही आस्था से प्रेरित होकर आते हैं।
भारतीय संस्कृति का अद्वितीय मंच
कुंभ मेले के माध्यम से हिंदू समाज को एकता के चार विशाल मंच—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक प्राप्त हुए हैं, जो चार दिशाओं में आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक हैं। यह आयोजन न केवल भारतीय सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है, बल्कि विश्वभर के श्रद्धालुओं को सनातन धर्म की महानता से परिचित कराता है।
(संदर्भ: सनातन संस्था ग्रंथ ‘कुंभमेले का महत्त्व तथा पावित्र्यरक्षण’)