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वैदिक काल से चली आ रही लोक परंपरा का पर्व — छठ महापर्व

सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का लोकपर्व छठ महापर्व सोमवार को धर्मनगरी हरिद्वार में आस्था और उत्साह के साथ मनाया गया। गंगा तटों पर हजारों व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मंगलकामना की। मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही यह पर्व संपन्न होगा।

 

हरकी पौड़ी, प्रेमनगर आश्रम, जटवाड़ा पुल, गंगनहर बहादराबाद, बैरागी कैंप, शीतला माता मंदिर घाट, राधा रास बिहारी घाट और पायलट बाबा घाट सहित अन्य घाटों पर भव्य दृश्य देखने को मिला। पारंपरिक छठ गीतों से पूरी धर्मनगरी गुंजायमान रही। घाटों पर पूर्वांचल, बिहार और झारखंड के प्रवासियों के साथ स्थानीय श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में शामिल हुए।

 

छठ महापर्व की जड़ें वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती हैं। ऋग्वेद में सूर्य पूजन के उल्लेख से इसका संबंध बताया गया है। माना जाता है कि माता सीता ने मुंगेर में गंगा तट पर पहला छठ व्रत किया था, वहीं सूर्यपुत्र कर्ण और द्रौपदी द्वारा किए गए व्रत के प्रसंग भी इस पर्व से जुड़े हैं। यह पर्व सूर्य देव (जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के देवता) तथा उनकी बहन छठी मैया (षष्ठी देवी) की उपासना का प्रतीक है।

 

व्रती 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह पर्व अनुशासन, सादगी और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का संदेश देता है। खास बात यह है कि यह एकमात्र पर्व है जिसमें डूबते और उगते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है — जो जीवन के उत्थान और अस्त की स्वीकार्यता का प्रतीक है।

 

छठ पर्व के अवसर पर पूर्वांचल उत्थान संस्था, पूर्वांचल महासभा, बिहारी महासभा, पूर्वांचल भोजपुरी महासभा, छठ पूजा समिति हरिपुर कलां, पूर्वांचल जनजागृति समिति और पूर्वांचल उत्थान सेवा समिति की ओर से घाटों पर विशेष प्रबंध किए गए थे। सुरक्षा, स्वच्छता और प्रकाश व्यवस्था के व्यापक इंतजाम से श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसका विशेष ध्यान रखा गया।

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