चेन्नई/नई दिल्ली, 21 सितम्बर 2025 — केंद्र सरकार ने तीन-भाषा नीति (Three-Language Policy) को लेकर उठ रही आशंकाओं पर साफ़ कर दिया है कि किसी राज्य पर कोई भाषा थोपने का मकसद नहीं है। यूनियन शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तामिलनाडु सरकार के इस आरोप का खंडन किया कि केंद्र ने हिन्दी थोपने का प्रयास किया है।
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क्या कहा गया:
प्रधान ने कहा कि कक्षा 1 और 2 में दो-भाषा फ़ार्मूला रहेगा, जिसमें एक भाषा मातृभाषा होगी। उदाहरण के लिए तामिलनाडु में यह तमिल है। दूसरी भाषा राज्य की पसंद की हो सकती है।
कक्षा 6 से 10 तक तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी — एक मातृभाषा और बाकी दो भाषाएँ विद्यार्थी अपनी पसंद से चुन सकते हैं।
प्रधान ने तामिलनाडु सरकार को कहा कि शिक्षा के मामले में राजनीति को पीछे रखना चाहिए। शिक्षा की प्राथमिकता छात्रों की कल्याणता और उनके करियर के अवसरों की रक्षा है, न कि भाषाई मतभेदों पर राजनीति करना।
उन्होंने यह भी बताया कि कई राज्य — चाहे भाजपा-शासित हों या अन्य — पहले से तीन-भाषा नीति लागू कर रहे हैं। उदाहरण के रूप में यूपी में विद्यार्थियों को हिंदी के अतिरिक्त दूसरी/तीसरी भाषा के विकल्प दिए जाते हैं।
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✅ निष्कर्ष:
इस बयान से स्पष्ट होता है कि केंद्र की नीति भाषा अधीनता या ज़बरदस्ती से नहीं, बल्कि बहुभाषیता, स्थानीय भाषाओं की मान्यता, और छात्रों को भाषा-विविध विकल्प देने की सोच पर आधारित है। विरोधी کسان इस नीति को राजनीतिक मुद्दे के रूप में पेश कर रहे हैं, पर नीति के मूल में भाषाई विविधता और विकल्प की स्वतन्त्रता है।