वितरण और उत्पादन कंपनियों ने बढ़ोतरी के दिए तर्क, उपभोक्ताओं ने बताया अव्यवहारिक
देहरादून। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग द्वारा मंगलवार को बिजली दरों में संभावित वृद्धि को लेकर आयोजित सार्वजनिक सुनवाई में उपभोक्ताओं ने जोरदार विरोध दर्ज कराया। देहरादून के पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क सभागार में हुई इस सुनवाई में यूजेवीएनएल (UJVNL), यूपीसीएल (UPCL) और पिटकुल जैसी कंपनियों के प्रतिनिधियों को उपभोक्ताओं के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा।
उपभोक्ताओं ने आरोप लगाया कि बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं है और घाटे का बोझ सीधे उपभोक्ताओं पर डालना गलत है। उन्होंने बिजली की गुणवत्ता, बार-बार कटौती और पुराने बिलों में गड़बड़ियों का मुद्दा भी उठाया।
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मुख्य बिंदु:
यूजेवीएनएल ने 2.22% और यूपीसीएल ने 8.63% राजस्व वृद्धि की मांग की
पिटकुल ने ₹173.80 करोड़ के राजस्व अंतर को संतुलित करने के लिए दरों में वृद्धि का प्रस्ताव रखा
आयोग द्वारा आम जनता से बिजली दरों पर आपत्ति/सुझाव मांगे गए
बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता, व्यापारी और आम उपभोक्ता सुनवाई में शामिल हुए
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️ जनसुनवाई में उठी प्रमुख आपत्तियां:
“सरकारी कंपनियां अपने खर्चों में कटौती करें, बोझ उपभोक्ताओं पर न डालें।”
“राजस्व घाटा खुद की कार्यशैली और अनियोजित प्रबंधन का नतीजा है।”
“बिजली दर बढ़ने से महंगाई और रोजगार पर असर पड़ेगा।”
“पहाड़ी क्षेत्रों में पहले ही लाइन लॉस ज्यादा है, वहां दरें बढ़ाना अन्यायपूर्ण।”
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⚡ आयोग की प्रक्रिया:
उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग हर साल टैरिफ याचिकाओं पर सार्वजनिक सुनवाई करता है। इसके तहत आम नागरिकों को अपने विचार रखने का अवसर दिया जाता है। सुनवाई के बाद आयोग सभी पक्षों की बातों पर विचार कर अंतिम निर्णय लेता है।
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विशेषज्ञों की राय:
ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य की बिजली कंपनियां लाइन लॉस कम करने, बिलिंग में सुधार और सुदृढ़ वितरण प्रणाली पर ध्यान नहीं देतीं, और हर साल बढ़ती दरों के सहारे घाटा पूरा करना चाहती हैं।
निष्कर्ष:
राज्य में लगातार बढ़ती महंगाई के बीच बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी आम जनता के लिए एक और झटका साबित हो सकती है। उपभोक्ताओं की स्पष्ट मांग है कि पहले सेवा सुधारें, फिर दरें बढ़ाएं। अब सबकी निगाहें आयोग के फैसले पर टिकी हैं, जो अगले कुछ हफ्तों में सामने आने की संभावना है।