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उत्तराखंड पंचायत चुनाव: भाजपा व कांग्रेस की रणनीतिक जुटान

उत्तराखंड में हाल ही में संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (जिला, क्षेत्र, ग्राम पंचायत स्तर) ने राज्य की राजनीतिक तस्वीर को एक बार फिर से बदल कर रख दिया है। कुल 12 जिलों में दो चरणों में आयोजित होने वाले मतदान में 69 % से अधिक मतदान पंगतियाँ दर्ज हुए हैं, जिनमें कुल 10,831 पदों के लिए गोहार हुई थी ।

 

आंकड़ों के अनुसार, 358 जिला पंचायत सीटों में से निर्दलीयों ने सबसे अधिक 128 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा गुट (बीजेपी + समर्थित) को 124 व कांग्रेस गुट को 94 सीटों पर सफलता मिली ।

 

इस चुनाव में दोनों राष्ट्रीय पार्टियाँ—भाजपा और कांग्रेस—अब जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लॉक प्रमुख पदों के लिए रणनीतिक रूप से कार्यरत हैं। चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद से दोनों दल विजयी निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने-अपने पाले में लाने की सक्रिय कोशिश कर रहे हैं ।

 

पॉलिटिकल परिदृश्य:

 

भाजपा ने भगाया परचम: भाजपा के सीधे उम्मीदवारों को 101 और समर्थित उम्मीदवारों को 23 सीटें मिलीं; कुल मिलाकर उनके गुट को 124 सीटों की जीत हासिल हुई है ।

 

कांग्रेस का मुकाबला कठिन: कांग्रेस के सीधे उम्मीदवारों को 64 सीटें मिलीं, जबकि समर्थित उम्मीदवारों ने 30 सीटें जीतीं—कुल 94 जीतें ।

 

निर्दलीयों का दबदबा बरकरार: ग्रामीण इलाकों में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही निर्दलीय उम्मीदवारों के प्रति अपनी नीतियों को आकर्षक बनाने में लगे हुए हैं ।

 

 

आरक्षण विवाद उजागर

 

राज्य सरकार ने जिला‑पंचायत अध्यक्ष पदों के लिए आरक्षण सूची जारी की है, जिसमें पौराणिक रूप से महिला, SC/ OBC प्रत्याशियों को आरक्षित सीटें दी गईं। इस निर्णय पर कांग्रेस की ओर से तीखा आरोप लगा है कि भाजपा विपक्षियों को चुनाव मैदान से बाहर करने के उद्देश्य से आरक्षण प्रक्रिया को राजनीतिक हथियार बना रही है। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरिश रावत ने इस पर गहरी नाराज़गी जताई है। भाजपा ने इस प्रतिक्रिया को हास्यास्पद बताया है और स्पष्ट किया है कि यह सूची 2016 की कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए संविधानिक नियमों पर आधारित है व संशोधन के लिए 4 अगस्त तक आपत्तियाँ आमंत्रित की गई हैं; अंतिम सूची 6 अगस्त को घोषित की जाएगी ।

 

क्षेत्रीय झुकाव और नए उम्मीदवार

 

चमोली, नैनीताल, पिथौरागढ़ जैसे जिलों में मतदाताओं ने पारंपरिक दलों को पीछे छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवारों को आगे बढ़ा दिया है। भाजपा के कई दिग्गज नेता, विधायक और उनके परिवार चुनाव हार गए जबकि युवा और नए चेहरे जीत रहे हैं, जैसे चीला दुगड्डा सीट से निर्दलीय सीमा भंडारी की विजयी कहानी, जिसने भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों को मात दी—यह ग्रामीण राजनीति में बदलते जनादेश की समीक्षा बताती है ।

 

अब क्या?

 

पार्टी दोनों पक्षों के वरिष्ठ नेता अब घटनाओं की दिशा तय करने वाले रणनीतिक गठजोड़ में लगे हैं।

 

छह अगस्त से जिला‑पंचायत अध्यक्ष व ब्लॉक प्रमुख पदों के लिए फॉर्मल नामांकित प्रक्रियाएं शुरू होने की संभावना है—इन पदों पर संचालन संतुलन अब निर्दलीय गठजोड़ों पर निर्भर करेगा ।

 

कांग्रेस को आगामी 2027 विधानसभा चुनाव से पहले अपनी संगठनात्मक कमजोरियों पर फिर से विचार करना होगा, जबकि भाजपा को निर्दलीय बड़े दलगत संरचना को संभालना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है ।

 

 

 

 

लॉन्चिंग हेडर्स:

 

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