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वीआईपी कल्चर: लोकतंत्र का मजाक ?

मुख्य संपादक सचिन तिवारी की कलम से..

लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है – समानता। इसमें हर नागरिक को समान अधिकार और सुविधाएँ मिलनी चाहिए, लेकिन व्यावहारिक रूप में देखा जाए तो वीआईपी संस्कृति इस सिद्धांत को कमजोर करती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कुछ लोगों को विशेषाधिकार देकर आम जनता से अलग कर देना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के भी विपरीत है। वीआईपी संस्कृति का असर जनता पर सीधा पड़ता है, क्योंकि उनके द्वारा दिए गए टैक्स का पैसा कुछ विशेष लोगों की सुख-सुविधाओं में खर्च किया जाता है, जिससे देश के विकास कार्य प्रभावित होते हैं।

संविधान कहता है कि हर नागरिक समान है, लेकिन जब कोई वीआईपी बिना लाइन में लगे सेवाएँ प्राप्त करता है, यातायात रोक दिया जाता है, या सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह समानता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। आम जनता को सड़क पर खड़े होकर घंटों इंतजार करना पड़ता है क्योंकि कोई वीआईपी गुजरने वाला होता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए एक शर्मनाक दृश्य है, जहाँ जनता को तकलीफ देकर नेताओं, अधिकारियों और अन्य प्रभावशाली लोगों को विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं।

एक लोकतांत्रिक सरकार का दायित्व है कि वह जनता के पैसे का सही उपयोग करे। लेकिन जब जनता से वसूले गए टैक्स का पैसा नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा, आलीशान गाड़ियों, विशेष हवाई सेवाओं और अन्य वीआईपी सुख-सुविधाओं पर खर्च किया जाता है, तो यह देश की प्रगति में बाधक बन जाता है। जिस धन का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आधारभूत संरचना के विकास में होना चाहिए, वह चंद लोगों की विलासिता में खर्च हो जाता है।

भारत जैसे विकासशील देश को आर्थिक रूप से सशक्त बनने के लिए संसाधनों का न्यायसंगत वितरण करना होगा। वीआईपी संस्कृति केवल आर्थिक असमानता को ही नहीं बढ़ाती, बल्कि प्रशासनिक ढांचे को भी कमजोर बनाती है। कई बार आवश्यक सरकारी योजनाएँ केवल इसलिए धीमी पड़ जाती हैं क्योंकि नीति-निर्माता और अधिकारी खुद को जनता से ऊपर मानते हैं और जमीनी हकीकत से कटे रहते हैं। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है और आम नागरिकों की जरूरतें उपेक्षित रह जाती हैं।

वीआईपी संस्कृति को खत्म करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, सभी नागरिकों को एक समान सुविधाएँ मिलनी चाहिए, चाहे वे किसी भी पद पर हों। नेताओं और अधिकारियों को अतिरिक्त सुरक्षा और विशेषाधिकार देने की परंपरा बंद करनी होगी। ट्रैफिक जाम के कारण वीआईपी मूवमेंट से होने वाली परेशानी को खत्म करने के लिए विशेष नियम बनाए जाने चाहिए। इसके अलावा, जनता को भी इस संस्कृति के खिलाफ आवाज उठानी होगी। जब तक लोग इस भेदभावपूर्ण व्यवस्था को स्वीकार करते रहेंगे, तब तक बदलाव की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वीआईपी संस्कृति एक गंभीर समस्या है, जो समाज में असमानता और अन्याय को बढ़ावा देती है। लोकतंत्र में हर नागरिक बराबर होता है और किसी को भी विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए। जब तक इस संस्कृति को खत्म नहीं किया जाता, तब तक देश के वास्तविक विकास में बाधाएँ बनी रहेंगी। अब समय आ गया है कि सरकार और जनता मिलकर इस मानसिकता को बदले और एक समान, न्यायसंगत व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए।

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