अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
यहां “अयं निजः परो वेति” का अर्थ होता है कि एक छोटे सोच वाले लोग सोचते हैं कि वे और उनका संपत्ति उन्हें स्वयं के लिए हैं, जबकि उदार विचार वाले लोग समझते हैं कि समस्त पृथ्वी हमारे लिए एक परिवार है। इसलिए हमें उसे ध्यान में रखना चाहिए। पृथ्वी एक कुटुंब है और हम सभी एक ही परिवार के अंग हैं।
अयं विश्वस्य चिद्रूपं प्राणिनां चरणाचरे।
यत्र किञ्चिद्धिया सर्वं तद्देव परिपालयेत्॥
यह विश्व संसार का स्वरूप है, जो सभी जीवों के स्थायी और चर जगत में है।
जहां जैसा भी ध्यान से सब कुछ है, वहां हमें वही संसार संभालना चाहिए॥
यह पृथ्वी के समस्त प्राणियों के साथ-साथ चर और अचर जगत की स्वरूपता है।
अन्नं न पर्ज्ञातं न जलं सुपान्तं,
न वस्त्रं न यान्त्रं न गृहं न गाड्यम्।
अयं विषयेन्द्रियमाणवः प्रणीतो,
न तत्त्वमेतत् सत्यं परमं ब्रह्म।।
अन्न (भोजन), पानी (जल), वस्त्र (कपड़ा), यान्त्रिकी (यंत्र-गाड़ी) और गृह (घर) आदि विषयों द्वारा मनुष्य नहीं पूर्ण होता है। यह शरीर मात्र है। यह विषयों द्वारा प्राप्त होने वाली अनुभूतियाँ असत्य हैं। आत्मा ही सत्य और परम ब्रह्म है।
यतो वायुर्गच्छति मनः, ततो वचः संवदाम्यहम्।
यतो मनोऽगच्छति प्राणः, ततोऽहं नमामि तम्।।
वायु मन की ओर चलता है, मन की ओर चलते हुए मैं वाचा बोलता हूँ। मन प्राण की ओर चलता है, प्राण की ओर चलते हुए मैं उसे नमस्कार करता हूँ।
ऋग्वेद में कहा गया है:
पृथिवी माता पुत्रं पृथिव्या:।
अर्थ: पृथ्वी माता है और हम उसके पुत्र हैं।
यजुर्वेद में कहा गया है:
अपो देवी भुवना नि विश्वा।
अर्थ: जल देवता हैं, जो सभी प्राणियों के लिए पृथ्वी में स्थित हैं।
पृथ्वी माता हम सब उसके पुत्र हैं। पृथ्वी अपनी मातृभूमि के रूप में हमें पालन करती है, हमें आवास प्रदान करती है, और हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हमें संसाधनों की प्रदान करती है। पृथ्वी हमारे जीवन का संरचनात्मक आधार है जो हमें खाद्य, जल, वायु और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों से निरंतर पोषण प्रदान करती है।
पृथ्वी माता हमें अनंत संपत्तियों से आशीर्वादित करती है, जिसमें पर्यावरणीय संतुलन, वनस्पति, पशु-पक्षी और नदी-तालाबों की विविधता, मनोहारी पहाड़ और नदीयां, सुंदर वातावरण और समृद्धि की अनुभूति शामिल होती है। पृथ्वी ने हमें सृजनात्मकता, नवीनता, स्थिरता और सहजता का ज्ञान सिखाया है। हमारी संभावनाओं की प्रकृति पृथ्वी द्वारा संभव बनाई गई है, और हमें इसे सम्पूर्ण समर्पण के साथ रखना चाहिए।इसलिए, हमें पृथ्वी के प्रति आभार और सम्मान की भावना रखनी चाहिए ।