मुरादाबाद, 14 अक्टूबर 2025 — बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती और उनके साथ लंबे समय तक रहे साथी वीर सिंह के बीच के पुराने किस्से अब एक नए राजनीतिक दृष्टिकोण को जन्म दे रहे हैं। हाल की राजनीति में इन पुरानी यादों का राजनीतिक उपयोग भी हो रहा है।
—
“चार आने का धनिया” — एक सरल घटना, गहरा अर्थ
वीर सिंह बताते हैं कि उनके समय में संसाधन कम थे। एक दिन, मायावती मुरादाबाद दौरे पर उनके घर ठहरीं। घी खत्म हो गया था, इसलिए उन्होंने चटनी में धनिया इस्तेमाल करने का आग्रह किया। वीर सिंह बाजार से “चार आने का धनिया” ला कर लाए। यह घटना सामान्य लगती थी, पर वीर सिंह इसे उस दौर की सादगी और आदर्शवाद का प्रतीक मानते हैं।
वे आगे बताते हैं कि उस समय मायावती बैठक में कुर्सी पर बैठती थीं, जबकि मंत्री, विधायक एवं पदाधिकारी ज़मीन पर बैठते थे—इस तरह का अनुशासन और नेतृत्व का अंदाज़ आज शायद खोजना मुश्किल हो चला है।
—
संघर्ष, बदलती राजनीति और दूरी
वीर सिंह ने कहा है कि जब मायावती शुरुआत में शक्तिशाली और लोकहितपरक थीं, उन्होंने दलितों में सामाजिक चेतना जगाई। लेकिन समय के साथ, वे उन आदर्शों से दूर होती चली गईं।
उनका यह भी आरोप है कि बाद में पार्टी के भीतर स्थिति बदल गई—नेताओं को पर्याप्त स्थान नहीं मिला, निर्णय केंद्रीकृत हो गए, और जबकि वे व्यक्तिगत संबंधों पर भी असर पड़ा।
2021 में जब उन्होंने बसपा छोड़ी और पहले सपा, फिर भाजपा का दामन थामा, तब यह राजनीतिक दूरी और साफ हुई। आज भी वह बसपा से जुड़े दिनों की यादों को जीवंत रखते हैं।
—
राजनीति में पुरानी कहानियाँ, नया राजनैतिक संदर्भ
राजनीति में अक्सर पुराने किस्सों को नए संदर्भों में पेश किया जाता है। “चार आने का धनिया” जैसे किस्से वर्तमान नेताओं के चरित्र, झुकाव और वैचारिक प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर देते हैं।
मायावती के समर्थक इसे “निर्मल सत्ता की याद” कहते हैं, विरोधी इसे “वादों और व्यवहार में अंतर” का उदाहरण।
बहरहाल, वीर सिंह की ये यादें न सिर्फ व्यक्तिगत इतिहास हैं, बल्कि आज की राजनीतिक लड़ाई में एक हथियार बन चुकी हैं — यह दिखाने के लिए कि किस तरह नेताओं की छवि समय, शक्ति और संबंधों के साथ बदलती है।