नई दिल्ली / सियोल। दक्षिण कोरिया, जो विश्व में अपनी हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाओं, स्मार्ट टेक्नोलॉजी तथा हुंडई-, एलजी-, सैमसंग जैसी कंपनियों के लिए जाना जाता है, सायबर सुरक्षा मामलों में लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहा है। गत एक वर्ष में हर महीने एक बड़े साइबर हमले से उसकी डिजिटल डिफेंस की खामियों पर सवाल खड़े हुए हैं।
प्रमुख घटनाएँ
जनवरी 2025 में जीएस रिटेल से लगभग 90,000 ग्राहकों का निजी डेटा चोरी हुआ।
फरवरी 2025 में गेमिंग कंपनी वीमिक्स पर हैकरों ने लगभग $6.2 मिलियन की चोरी की।
अप्रैल 2025 में एसके टेलीकॉम से करीब 2.3 करोड़ उपयोगकर्ताओं का डेटा लीक हुआ।
जून 2025 में ऑनलाइन टिकटिंग प्लेटफार्म येस24 पर रैंसमवेयर हमला हुआ।
जुलाई-अगस्त-सितंबर में क्रमशः नॉर्थ कोरिया से जुड़े हैकर्स द्वारा डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल, लौट कार्ड से डेटा चुराना तथा टेलीकॉम कंपनी के माध्यम से हजारों उपयोगकर्ताओं की जानकारी लीक होना शामिल है।
बुनियादी चुनौतियाँ
विशेषज्ञों ने बताया है कि दक्षिण कोरिया की साइबर सुरक्षा व्यवस्था कई मंत्रालयों और एजेंसियों में विभाजित है, जिस कारण हमले की शुरुआत में “कौन सक्रिय होगा” यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है।
साथ ही, देश में पर्याप्त साइबर विशेषज्ञों की कमी है, और सरकार की प्रतिक्रिया अक्सर घटना के बाद की होती है न कि पूर्व-तैयारियों के साथ।
सरकार की नई रणनीति और आलोचनाएँ
सितंबर 2025 में, राष्ट्रपति कार्यालय ने एक अंतर-एजेंसी साइबर योजना की घोषणा की है, ताकि साइबर हमले के पहले संकेतों पर तेज जांच-पड़ताल शुरू हो सके। लेकिन आलोचकों का कहना है कि सारी शक्ति राष्ट्रपति कार्यालय के पास केंद्रित होने से निर्णय प्रक्रियाएँ राजनीतिक हो सकती हैं और पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है।
निष्कर्ष
डिजिटल दुनिया में नेता के तौर पर की जा रही दक्षिण कोरिया की छवि के बावजूद, लगातार साइबर हमलों ने यह दिखाया है कि ‘आक्रामक सुरक्षा (proactive security)’ नीति, बेहतर समन्वय और विशेषज्ञों का विकास अब प्राथमिकता होनी चाहिए। आने वाले समय में यह देखना होगा कि नई रणनीतियाँ कितनी प्रभावी सिद्ध होती हैं।