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ऑटोमोबाइल लॉन्च में देरी का बना आम सच: कुल कंपनियों में से ८०% को होता है देरी का सामना

नई दिल्ली, 13 सितम्बर 2025 — भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में अक्सर नई गाड़ियों की लॉन्चिंग तय समय पर नहीं हो पाती है। एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि लगभग ८० प्रतिशत कंपनियों को लॉन्चिंग में देरी होती है। वेक्टर कंसल्टिंग ग्रुप की यह रिपोर्ट इस देरी के पीछे के कारणों और संभावित समाधान को विस्तार से बताती है।

 

 

 

देरी के प्रमुख कारण

 

1. डिज़ाइन और इंजीनियरिंग में आख़िरी समय पर बदलाव – प्रोटोटाइप और टेस्टिंग के बाद बदलाव अक्सर बड़े और अप्रत्याशित रूप से होते हैं।

 

 

2. सप्लायर्स से देर से फीडबैक – आवश्यक उपकरणों, पुर्जों या इंजनियरिंग इनपुट्स की सप्लायर से देरी से समय रुक जाता है।

 

 

3. डिज़ाइन के अंतिम रूप (design freeze) न हो पाना – प्रोडक्शन शुरू होने से पहले डिज़ाइन को फाइनल न करना भी एक बड़ी बाधा है।

 

 

 

 

 

असर — समय, खर्च और गुणवत्ता पर

 

समय-सीमा लम्बी होती है — ७६% कंपनियों ने बताया की परियोजनाएँ अपनी निर्धारित समय सीमा से काफी पीछे रही हैं।

 

बजट बढ़ता है — ४३% कंपनियों ने कहा कि लागत निर्धारित बजट से ऊपर चली गई।

 

वॉरंटी और गुणवत्ता से जुड़ी मुश्किलें — लॉन्च के बाद भी गाड़ियों की विश्वसनीयता (reliability) और गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता पड़ती है।

 

डीलर नेटवर्क और सेवा तैयारियों में देरी — उत्पादन के बाद बाज़ार तक पहुंचने व ग्राहक सेवा में व्यवस्थितता लाने में समय लगता है।

 

 

 

 

रिपोर्ट में प्रस्तावित समाधान

 

फ्लो-बेस्ड एग्जिक्यूशन मॉडल अपनाना ताकि प्रत्येक चरण (डिज़ाइन, सप्लायर, टेस्टिंग आदि) समय पर और बेहतर तरीके से समन्वयित हो सके।

 

शुरुआत से ही सप्लायर्स और अन्य स्टेकहोल्डर्स को विकास प्रक्रिया में शामिल करना। इससे बदलाव कम होंगे और समय प्रबंधन बेहतर होगा।

 

बदलावों को क्रिटिकल और नॉन-क्रिटिकल में बांटना ताकि केवल जरूरी बदलाव ही लाई जायें।

 

 

 

 

यदि समाधान लागू हो जाएँ तो क्या लाभ होंगे?

 

इंजीनियरिंग बदलावों में २०-३०% तक कमी संभव है।

 

गाड़ियों की लॉन्चिंग समय ३०-५०% तक कम हो सकती है।

 

पूरे सिस्टम की एफ़िशियेंसी में १५-२५% तक सुधार हो सकता है।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

भारत ऑटोमोबाइल सेक्टर में तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन समय प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण इनपुट और प्रोडक्शन-पूर्व नियोजन में सुधार के बिना कंपनियों को देरी और लागत दोनों का सामना बराबर करना पड़ रहा है। यदि प्रस्तावित सुधार लागू हो जाएँ, तो न केवल लॉन्चिंग तिथियों पर नियंत्रण होगा बल्कि ग्राहकों की संतुष्टि और उद्योग की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।

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