नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने पश्चिमी उदारवादी विचारों को भारत की सांस्कृतिक निरंतरता के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि यह “वैश्वीकरण के नाम पर एक नया उपनिवेशीकरण तरीका” है, जिसमें सभी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचारों को एक समान रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
“नई पीढ़ी के दिमाग में भरे जा रहे विदेशी विचार”
होसबोले ने चिंता जताते हुए कहा कि अगर हमारी नई पीढ़ी के दिमाग में ऐसे विचार भर दिए गए, तो देश की सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो जाएगी। उन्होंने लोगों से इस प्रक्रिया को रोकने के लिए जागरूक होने की अपील की।
किताब विमोचन कार्यक्रम में रखी बात
आरएसएस महासचिव बुधवार को राजीव मल्होत्रा और विजया विश्वनाथन द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘हू इज़ राइज़िंग योर चिल्ड्रन: ब्रेकिंग इंडिया विद यूथ वॉरियर्स’ के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने इस किताब को “चेतावनी की घंटी” बताया और कहा कि यह भारत की सांस्कृतिक निरंतरता पर मंडरा रहे खतरों को दर्शाती है।
पश्चिमी शिक्षा और नैतिकता पर सवाल
होसबोले ने पश्चिमी शिक्षा प्रणाली और कामुकता से जुड़े विचारों के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा विभिन्न विचारों का स्वागत करता रहा है, लेकिन यह जरूरी है कि वे हमारी सांस्कृतिक और नैतिक मानकों के अनुरूप हों।
नई शिक्षा नीति से उम्मीद
उन्होंने नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए कहा कि यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह देश की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने में मददगार साबित होगी।
आरएसएस महासचिव ने देशवासियों से आह्वान किया कि वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए जागरूक हों और इस सांस्कृतिक संघर्ष में अपनी भूमिका निभाएं।