उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य की जेलों में बंद 140 योग्य कैदियों की रिहाई में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार और कारागार प्रशासन से जवाब तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश रितु बहरी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने इस मसले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि जब कैदी सजा पूरी कर चुके हैं और सरकार ने रिहाई की स्वीकृति भी दे दी है, तो फिर उन्हें जेल में रखना मौलिक अधिकारों का हनन है।
कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट के अनुसार, ये 140 कैदी ऐसे हैं जिन्हें विभिन्न आधारों पर रिहा किया जाना है — जिनमें पैरोल पर अच्छा आचरण, लंबी सजा काट लेना और सरकार की नीति के अनुसार रिहाई की पात्रता शामिल है। बावजूद इसके, महीनों से इन कैदियों की रिहाई नहीं हो पाई है।
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि जब रिहाई की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, तो अब तक इन्हें रिहा क्यों नहीं किया गया? कोर्ट ने इस मामले में जवाब देने के लिए सरकार को अगली सुनवाई तक का समय दिया है।
यह मामला अब राज्य की न्यायिक और प्रशासनिक संवेदनशीलता की कसौटी बनता जा रहा है। मानवाधिकारों की दृष्टि से भी इस पर देशभर में नजर है।