ज्योतिर्मठ, चमोली, 29 अप्रैल 2025: ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ‘1008’ ने कहा कि जो जगत की वास्तविकता बता सके, वही सच्चा जगतगुरु है। 9 दिवसीय ज्योतिर्मठ प्रवास के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान रूपी धन जितना बांटा जाए, उतना बढ़ता है, जबकि धन खर्च करने से खत्म हो जाता है।
शंकराचार्य जी ने उपनिषदों के अर्थ को समझने पर जोर देते हुए कहा कि विमल आचरण वाले की पूजा करनी चाहिए। उन्होंने दयालु और करुणामय की परिभाषा बताते हुए कहा कि दुखी के दुख को देखकर जो रुक जाए, वह दयालु, और जो दुख सोचकर दुखी हो, वह करुणामय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संसार की समस्याएं तब तक हैं, जब तक हम उन्हें जान नहीं लेते।
पाप और पुण्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि पाप कर्म का फल दुख और पुण्य कर्म का फल सुख है। गुरु के मार्गदर्शन से पाप कर्म रुकते हैं, और पुण्य कर्म के प्रति लालसा छोड़ने से मन निर्मल होकर ज्ञान की इच्छा जागृत होती है।
सभा में श्री शिवानंद उनियाल ने सपत्नीक शंकराचार्य जी की चरणपादुका पूजा की। इस अवसर पर ज्योतिर्मठ प्रभारी दंडी स्वामी प्रत्यक्चैतन्यमुकुंदानंद गिरी, अप्रमेयशिवसाक्षात्कृतानंदगिरी, श्रीनिधिरव्ययानंदसागर महाराज, विष्णुप्रियानंद ब्रह्मचारी, नगरपालिका अध्यक्षा देवेश्वरी शाह, सुषमा डिमरी, शांति चौहान, महिमानंद उनियाल सहित अनेक भक्त उपस्थित रहे।