उत्तर प्रदेशउत्तराखंडगढ़वाल मण्डलदेश-विदेशदेहरादूनयूथरुड़कीशिक्षासामाजिकहरिद्वार

स्वामी वेदमूर्ति पुरी महाराज बने निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर

हरिद्वार में हुआ भव्य पट्टाभिषेक, संत समाज और धर्म जगत में उल्लास की लहर

सनातन धर्म और संत परंपरा के उन्नायक, बगलामुखी पीठाधीश्वर स्वामी वेदमूर्ति पुरी महाराज को श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा का महामंडलेश्वर नियुक्त किया गया। यह ऐतिहासिक घोषणा हरिद्वार स्थित निरंजनी अखाड़े में हुए भव्य पट्टाभिषेक समारोह में की गई। वैदिक मंत्रोच्चार और पारंपरिक विधानों के साथ उन्हें तिलक, चादर और माल्यार्पण कर महामंडलेश्वर पद की गरिमा प्रदान की गई।

 

समारोह की अध्यक्षता अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने की। उन्होंने स्वामी वेदमूर्ति पुरी जी के सनातन धर्म, सेवा और साधना के प्रति समर्पण को सराहते हुए कहा,

 

> “स्वामी वेदमूर्ति पुरी न केवल साधना की प्रतिमूर्ति हैं, बल्कि वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। उनका महामंडलेश्वर पद तक पहुँचना पूरे संत समाज के लिए गौरव का विषय है।”

 

 

 

संत समाज की गरिमामयी उपस्थिति

 

इस शुभ अवसर पर स्वामी ललितानंद गिरी, महंत राजगिरी, प्रकाश पुरी, जगदीशनंद, महंत रामरतन गिरी सहित अनेक वरिष्ठ संत उपस्थित रहे और सभी ने स्वामी वेदमूर्ति पुरी को आशीर्वाद प्रदान किया।

 

गुरु के प्रति श्रद्धा और सेवा का संकल्प

 

अपने वक्तव्य में स्वामी वेदमूर्ति पुरी महाराज ने भावुक होकर कहा,

 

> “गुरु के बिना संत का जीवन अधूरा है। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे श्रीमहंत रविंद्रपुरी जी जैसे गुरु का सान्निध्य मिला। मैं अपने तन, मन और जीवन को अखाड़े और सनातन धर्म की सेवा में समर्पित करता हूँ।”

 

 

 

उन्होंने युवाओं को अध्यात्म की ओर प्रेरित करने, राष्ट्रहित में साधु समाज की भूमिका को और सशक्त करने तथा धर्म प्रचार में निरंतर सक्रिय रहने का संकल्प भी दोहराया।

 

पूरे देश में हर्ष की लहर

 

स्वामी वेदमूर्ति पुरी महाराज को महामंडलेश्वर बनाए जाने की खबर से धर्म जगत में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। देशभर के मठों, आश्रमों और संत समाज के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी बधाइयों का तांता लग गया।

 

 

 

निरंजनी अखाड़ा –

श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा भारत के प्रमुख 13 अखाड़ों में से एक है। इसकी स्थापना 10वीं शताब्दी में हुई थी और यह अखाड़ा ज्ञान, योग, तप और सनातन परंपराओं को जीवित रखनेमें अग्रणी रहा ह

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button